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छाती पर बुलडोज़र / रामकिशोर दाहिया
Kavita Kosh से
झोपड़पट्टी
टूट रही है
सिर की छाया छूट रही है
हृदय विदारक
चित्र चीखता
नहीं चिरौरी
से चुप होता
चलता छाती पर
बुलडोज़र
बेजा कब्ज़ा
खाली होता
नुकसानी
अनकूत रही है
झोपड़पट्टी टूट रही है
सिर के छुपने
की गुंजाइश
चौड़ी सड़कें
छीन रही हैं
लोटा, झौवा
बिखरा दाना
रोटी गृहणी
बीन रही हैं
रेंड़ी चुट-चुट
फूट रही है
झोपड़पट्टी टूट रही है
अल्लाखोह1
मची है भारी
बरपा क़हर
क़हर के मानें
जिन्दा खालें
पानी खौला
डाला डेरे को
उठवाने
लिखा रपट
भर झूठ-सही है
झोपड़पट्टी टूट रही है
टिप्पणी : अल्लाखोह- प्राण रक्षा के लिए चीख-पुकार, हाहाकार।
-रामकिशोर दाहिया