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छुट्टी का दिन / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
अलसायी, गुनगुनाहट में
रचा - बसा,
धूप में नहाता,
झप - झप करता
कजरारी आंखें,
अभी - अभी पीये दूध की
ओंठ के ऊपर उभरी
दूधिया लकीर
पोंछता उसके कपड़ों से
नन्हा शैतान
उसकी छवि
आत्मसात करती
अपनी ही कृति पर
निछावर होती
बैठी है
कोई आपाधापी नहीं
आज रविवार है