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छू भर जाना / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
मैं
सबरी सरीखी
बेसबरी धारे हूं
तुम राम सरीखे
मत आना
पर
जो यही मन धारो
तो कहूं शर्माती
कानाबाती
ओ मेरे साजन
कण-कण मोरे
रच बस जाना
राम सरीखे
मत तड़पाना।
बस
जल बन आना
छू भर जाना
मरु को अपनी
दे जाना
किलकारी सी
एक निशानी।