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छोटा छाता / उषा यादव
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					छोटा बच्चा मुझे जानकर, 
रोज सताता सूरज दादा। 
माँ, अब छाता बड़ा जरूरी, 
और कहूँ क्या इससे ज्यादा। 
मजा आए यदि फूलदार हो, 
वरना सस्ता-सादा ला दो। 
महँगाई की बात न करना 
बस, कल ही छाता मँगवा दो। 
अभी धूप में कुम्हलाता हूँ, 
फिर वर्षा आकार दुख देगी। 
छोटा हूँ मैं, रोज भीगकर
सेहत कैसे सही रहेगी?
मौसम का उत्पाद कहाँ तक 
तेरा लाल सहेगा माता। 
सौ दर्दों की एक दवा जो 
वही दिला दो, छोटा छाता।
	
	