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छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान / हरिवंशराय बच्चन

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छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान!

स्वार्थ का जिसमें न था कण,
ध्येय था जिसका समर्पण,
जिस जगह ऐसे प्रणय का था हुआ अपमान!
छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान!

भाग्य दुर्जम और दुर्गम
हो कठोर, कराल, निर्मम,
जिस जगह मानव प्रयासों पर हुआ बलवान!
छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान!

पात्र सुखियों की खुशी का,
व्यंग का अथवा हँसी का,
जिस जगह समझा गया दुखिया हृदय का गान!
छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान!