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छोलतू / विनोद विट्ठल

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(तीन सौ की आबादी का हिमाचल का वह छोटा-सा गाँव जहाँ मैं रहता हूँ — सतलुज किनारे)

(एक)

यहाँ नहीं आते हैं कोई अख़बार
न ये जाता है अख़बार तक

यहीं आकर पता चलती है
कितनी अच्छी होती है अख़बार से दूरी !

(दो)

जीते हैं जैसे मोटे
अपने वज़न के साथ

पहाड़ी पहाड़ के साथ !

(तीन)

कितने अकेले होते हैं पहाड़

ऊँचाई अकेला कर देती है !

(चार)

यहाँ लोग उगाते हैं सेब
ताकि गाल लाल हो सकें
डाक्टरों, वक़ीलों, नेताओं के

इन्हीं की याददाश्त के लिए अखरोट उगाते
ये ख़ुद भूल जाते हैं अखरोट के फ़ायदे !