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जग मुझसे पूछा करता है / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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जग मुझसे पूछा करता है
तुम क्या हो, यह क्रन्दन क्या है
मैं अपने से पूछा करता
मैं क्या हूँ, यह जीवन क्या है
मन में मौन, मौन जग सारा
मौन बना है प्रश्न हमारा
अम्बर मौन खड़ा है ऊपर
भू पर मौन स्वरूप तुम्हारा
मैं तुमसे पूछा करता हूँ
तुम क्या हो, यह चिन्तन क्या है
हँसता रोता चाँद अकेला
फैला नीलाकाश तुम्हारा
हँसना रोना साथ मिला दो
हो मधमय उच्छ्वास हमारा
मैं तुम से पूछा करता हूँ
यह धूमिल गगनांगन क्या है
यह लघुतर आकार हमारा
यह विस्तृत संसार तुम्हारा
जीवन सारा बीत चला पर
मिला न पारावार तुम्हारा
सृष्टि और संहार बीच में
कह दो सत्य चिरन्तन क्या हैं