जड़ें / कुमार कृष्ण
सौ-सौ करवटें बदलकर
उतरकर ज़मीन में बहुत गहरे
अपना रास्ता ढूँढ़ती हैं जड़ें।
बालों की तरह महीन
धागों की तरह कमजोर
मजबूती से पकड़ती हैं ज़मीन
फिर भी हर वक़्त
सहमे रहते हैं पेड़ों के रेवड
अपनी-अपनी फुनगियाँ हिलाते
मौसम के पक्ष में।
जड़ें झेलती हैं मौसम की हरकतें
जड़े चलती हैं अन्दर-ही-अन्दर
बिना किसी शोर के
जड़ें फोड़ती हैं ज़मीन
बिना किसी शोर के।
जड़ों के बारे में
बात करने का मतलब
मरियल पेड़ों की पीठ थपथपाना है
जड़ों को सींचना
पेड़ की ताकत बढ़ाना है।
जड़े पहुँच गई हैं पसरकर
बंगाल की खाड़ी तक
चूस रही हैं जड़ें
दिन-रात खारा पानी
बदल रही है जड़ें
सौ-सौ करवटें
ढूँढ़ रही हैं जड़ें
ज़मीन में घुला हुआ
देश का असली रंग।
जड़ें बता रही हैं
पेड़ों को
देश का अन्दरूनी तापमान।
इससे अच्छा वक़्त और नहीं हो सकता
पेड़ों को चाहिए
वे सब-के-सब
वट वृक्ष की तरह
खोखले आकाश की ओर जाने की जगह
ज़मीन के अन्दर चले जाएँ
अपनी-अपनी फुनगियों से महसूस करें
जड़ों की तकलीफ़।