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जनता / अशोक शुभदर्शी

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हम्में जनता छेकियै
हमरोॅ हजारोॅ आँख छै
हम्में देखी लै छियै
वहोॅ
जें तांेय करै छोॅ
हमरा सें छिपाय केॅ।

हम्में जनता छेकियै
हमरोॅ हजारोॅ कान छै
हम्में सुनी लै छियै
जें तोंय बोलै छोॅ
फुसफुसाय केॅ

हम्में जनता छेकियै
हमरोॅ हजार मुँह छै
जबेॅ हम्में बोलै छियै
बंद होय जाय छै
बोलती
बड़ोॅ-बड़ोॅ केॅ ।

तोरा हम्में बड़ोॅ मानलिहौं
यही लेली कि
तांेय बहुत अमीर छोॅ
तोंय रहै छोॅ बड़ोॅ महलोॅ में
तोंय बड़ोॅ पदोॅ पर छोॅ

तोरा हम्मेॅ बड़ोॅ मानलिहौं
यही लेली कि
तोय एक बड़ोॅ सफेद चोर छेकोॅ
तोंय घोटालाबाज छेकोॅ
सŸाा केॅ दलाल छेकोॅ

तोरा हम्मेॅ बड़ोॅ मानलिहौं
यही लेली कि
एगोॅ बड़ोॅ राज छिपलोॅ छोॅ
तोरोॅ सफलता केॅ पिछू

आरोॅ हुनका छोटोॅ मानलिहौं
यही लेली कि
हुनी पसीना बहाय छै
दिन-रात खेतोॅ में
भूखलोॅ मरै छै
झोपड़ी में रहै छै
तहियोॅ जियै छै
ईमान के वास्तें ।