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जब-जब / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जब-जब बढ़ीं क्रुद्ध लहरें गरजती हुईं
तब-तब चलायी थी नौका,
समुन्दर चकित था !
जब-जब गिरीं बिजलियाँ ये लरजती हुईं
तब-तब बढ़ाये क़दम दृढ़,
निलय भी नमित था !