भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब कभी प्रियपदनखच्छवि / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
जब कभी प्रियपदनखच्छवि कौंध जाती है हृदय में,
चाँदनी झट खींच घन-घूँघट लजाती है हृदय में!