जब तक द्वार नही खुलता है / सर्वेश अस्थाना
जब तक द्वार नही खुलता है दस्तक देता सदा रहूंगा
दूर खड़े होकर देखूंगा सांकल पवन हिलाएगा जब,
दृश्य नयन में भर भर लूंगा सूरज तुम्हे जगायेगा जब।
और शाम को बन कर साक्षी द्वार तुम्हारे आऊंगा तब
देखूंगा मयंक बिंदिया बन चेहरे पर मुस्कायेगा जब।
जब तक सूर्य नही उग जाता भोर सजाता सदा रहूंगा।
जब तक द्वार नही खुल जाता दस्तक देता सदा रहूंगा।
कोयल द्वार तुम्हारे आकर मधुर कंठ से गीत गायेगी,
सच कहता हूँ उसके स्वर में मेरी ही पुकार आयेगी।
जब कोई भौंरा कलियों के अवगुंठन पर मंडराएगा,
दृष्टि तुम्हारी हृदय पटल पर मेरी धड़कन ही पायेगी।।
गंध तुहारी उपवन उपवन मैं ढूंढा सर्वदा करूँगा।
जब तक द्वार नही खुलता है दस्तक देता सदा रहूंगा।
मेरा व्रत संकल्प यही है प्रेम द्वार पर बैठे रहना,
पता नही है द्वार तुम्हारे ऐसे या फिर वैसे रहना।
अगर प्रेम में प्रत्यर्पण की कोई शर्त नही होती तो
वचन हमारा, इसी यज्ञ में जीते रहना मरते रहना।।
अगर प्रेम मेरी बलि मांगे नही कभी मैं मना करूँगा।
जब तक द्वार नही खुलता है दस्तक देता सदा रहूंगा।