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जब तुम वृष्टि द्वारा अपना जल / कालिदास

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तस्‍यास्तिक्‍तैर्वननगजमदैर्वासितं वान्‍तवृष्टि-
     र्जम्‍बूकुञ्जप्रतिहतरयं तोयमादाय गच्‍छे:।
अन्‍त:सारं घन! तुलयितुं नानिल: शक्ष्‍यति त्‍वां
     रिक्‍त: सर्वो भवति हि लघु: पूर्णता गौरवाय।।

जब तुम वृष्टि द्वारा अपना जल बाहर उँड़ेल
चुको तो नर्मदा के उस जल का पान कर
आगे बढ़ना जो जंगली हाथियों के तीते
महकते मद से भावित है और जामुनों
के कुंजों में रुक-रुककर बहता है।
हे घन, भीतर से तुम ठोस होगे तो हवा
तुम्‍हें न उड़ा, सकेगी, क्‍योंकि जो रीते हैं वे
हलके, और जो भरे-पूरे हैं वे भारी-भरकम
होते हैं।