भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब तेरी बंदगी नहीं होती / रमेश 'कँवल'
Kavita Kosh से
जब तेरी बंदगी नहीं होती
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती
मौत की जुस्तजू1 है क्यों तुझको
मौत में दिलकशी2 नहीं होती
बात क्या है कि आजकल मुझको
तुझ से मिलकर खुशी नहीं होती
हाय बेचारगी-ओ-मजबूरी
जो करूं बंदगी नहीं होती
कितना दुश्वार है ये फ़न यारो
शायरी दिल्लगी नहीं होती
अब 'कंवल’ को न छेडि़येगा कभी
उसके लब पर हंसी नहीं होती
1. अन्वेषण 2. आर्कषण।