भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब शहर छोड़ कर जाऊँगा / लाल्टू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ दिनों तक
कुछ लोग करेंगे याद
छोड़ी हुई किताबें रहेंगीं
कुछ दोस्तों के पास
कपड़े या बर्तन जैसी चीज़ें
छोड़ने लायक हैं नहीं
जो रह जाएँगीं फेंकी ही जाएँगीं

कुछ तो फटे पैरों के चिह्न रह ही जाएँगे
दफ्तरी सामान पर होगी दफ्तरी लोगों की मारकाट
ठीक है, मर्जी थी, जाना था,
चला गया कह कह कर
झपटेंगे वे हर स्क्रू, हर नट बोल्ट पर

यह कोई मौत तो नहीं
कि कोई रोएगा भी
वक्त भी ऐसा कि वक्त पहले जा चुका
अब पूरा ही तब होऊँगा, जब जाऊँगा यहाँ से

होगी चर्चा सबसे अधिक
मेरे अधूरेपन पर ही
जब शहर छोड़ कर जाऊँगा।