भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जमानो / निशान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाड़ां बाजरी
छातां घास खड़ी
खेतां धान
अर बेलां पसरी
हवा मांय काकड़ियां री
सौरम घुळी
तूड़ी-पराळी स्यूं
छूट्यो पैण्डो
धामण री कूड़ी खड़ी
धाप-धाप आवै
गायां—भैंस्या
दूध-घी री मौज बणी
आसोज नीं लागै करड़ो
मौसम मांय ठण्ड री
रळक रळी ।