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जमा रंग का मेला! / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
जंगल का कानून तोड़कर,
जमा रंगा का मेला!
भंग चढ़ाकर लगा झूमने,
बबर शेर अलबेला!
गीदड़ जी ने ताक लगाकर,
एक कुमकुमा मारा,
हाथी जी ने पिचकारी से,
छोड़ दिया फव्वारा!
गर्दभ जी ने गजल सुनाई,
कौए ने कव्वाली,
ढपली लेकर भालू नाचा,
बजी जोर की ताली।
खेला फाग लोमड़ी जी ने,
भर गुलाल की झोली!
मस्तों की महफिल दो दिन तक,
रही मनाती होली!