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जलसे में खड़ी प्रजा / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
रात-रात
खतरे का गज़र बजा
काँप रही जलसे में खड़ी प्रजा
गुंबज के आसपास
तनी हुईं संगीनें
खोज रहीं हैं
बरगद के- पीपल के सीने
आये थे पुरस्कार पाने दिन - हुई सज़ा
ताल-कुएँ कैद हुए
लोग बड़े प्यासे हैं
शाही ऐलान हुआ
निरजला उपासे हैं
सब खुश हों - सजे रहें - राजा की यही रज़ा