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जवाब / विनोद विट्ठल
Kavita Kosh से
हाथों की तरह एक थे
आँखों की तरह देखते थे एक दृश्य
बजते थे बर्तनों की तरह
रिबन और बालों की तरह गुँथे रहते थे
साथ खेलना चाहते थे दो कँचों की तरह
टँके रहना चाहते थे जैसे बटन
टूटे तारे की तरह मरना चाहते थे
गुमशुदा की तरह अमर रहना चाहते थे
किसी और नक्षत्र के वासी थे दरअसल
पृथ्वी से दीखते हुए ।