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जहाँ कलह तहँ सुख नहीं,कलह सुखन को सूल.
सबै कलह इक राज में,राज कलह को मूल.
कहा भयो नृप हू भये, ढोवत जग बेगार.
लेत न सुख हरि भक्त को सकल सुखन को सार.
मैं अपने मन मूढ़ तें डरत रहत हौं हाय.
वृंदावन की ओर तें मति कबहूँ फिर जाय.