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ज़हर का सफ़र / सज्जाद बाक़र रिज़वी

मैं इंसान हूँ
मैं ने इक नागिन को डसा
उस को अपना ज़हर दिया
ऐसा ज़हर की जिस का मंत्र कोई नहीं
उस की रग रग में चिंगारी
उस के लहू में आग

मेरे ज़हर में नशा भी है
ऐसा नशा जिस का कोई ख़ुमार नहीं
वो नागिन अब मस्त नशे में झूमेगी
बहक बहक कर हर सू मुझ को ढूँडेगी
उस की ज़ुबान बाहर को निकली
उस के मुँह में झाग
आज है लोगो पूरन-माशी
ज़ख़्मी नागिन ज़हर उगलती
इंसानों को डस के उन के ख़ून में अपना ज़हर भरेगी
मेरी रग रग में चिंगारी
मेरे लहू में आग