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ज़ा ज़्द्राव्स्तूइचे सोवियत्स्की सयूज़ / प्रभाकर माचवे
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व्योम में सगर्व जा रहा, सगर्व सैन्य लाल
पितृदेश के अनन्य भक्त वीर नौजवान,
पंखहीन ये विहंगराज, सैकड़ों विमान
शत्रु देख अग्निवृष्टि, हो परास्त, हो बिहाल !
भूमि पै चला रही सधीर वीर-अंगना
तोप औ’ विमाननाशिका व शस्त्रगाड़ियाँ !
आज रूस की हुईं कई उजाड़ बाड़ियाँ
किन्तु धैर्य की दीवाल हो ज़रा भी भंग ना !
राक्षसी, बुभुक्षिता, महाकृतान्त दूतिका
आ रही असंख्य चील-सी विमानवाहिनी,
छा रही अनन्त सबमैरीन सिन्धुगाहिनी
योजनान्त टैंक औ’ विनाशिका स-स्वस्तिका,
किन्तु रूस का समस्त, स्वस्थ-नस्त तरुण-वर्ग
सोवियत् जय्ध्वनी, चढ़ा रहा सु-शीश-अर्घ्य !