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ज़िंदगी / शैलप्रिया
Kavita Kosh से
अख़बारों की दुनिया में
महंगी साड़ियों के सस्ते इश्तहार हैं ।
शो-केसों में मिठाइयों और चूड़ियों की भरमार है ।
प्रभु, तुम्हारी महिमा अपरम्पार है
कि घरेलू बजट को बुखार है ।
तीज और करमा
अग्रिम और कर्ज़
एक फ़र्ज़ ।
इनका समीकरण
ख़ुशियों का बंध्याकरण ।
त्योहारों के मेले में
उत्साह अकेला है,
ज़िंदगी एक ठेला है ।