गढ़े गए स्वार्थी नारों
और ज़हर उगलते शब्दों के ख़िलाफ़
सड़कों पर बाँटी जा रही मौतों
और अर्थहीन हो रही ज़िन्दगी के ख़िलाफ़
बचपन को रचते रहना ज़िद है ईश्वर की
अपनी उस सृष्टि के ख़िलाफ़
जो बनाई गई थी प्रेम और इंसानियत के लिए
लेकिन जिसने चुन लिया है घृणा का रास्ता
बचपन को रचना प्रतिरोध है ईश्वर का
कि तमाम इंसानी साज़िशों के बाद भी
बचा रहेगा जीवन
हँसता रहेगा जीवन
एक बच्चे के मासूम चेहरे में
और तब जब कि
एक असहाय चुप्पी के साथ
इतिहास साक्षी होता रहता है
नाज़ियों के देश से
सीरिया, पेशावर, तुर्की
या कि फ़िलिस्तीन, अफ़ग़ानिस्तान और कश्मीर तक फैले वहशीपन का
मैं सड़क पर पड़े एक टूटे खिलौने को
चुपचाप सहेज लेती हूँ
वहाँ एक धड़कता बचपन होगा