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ज़िन्दगी भर वफ़ा हमीं से हुई / नासिर काज़मी

ज़िन्दगी भर वफ़ा हमीं से हुई,
सच है यारों खता हमीं से हुई !

दिल ने हर दाग़ को रखा महफूज़,
ये ज़मीन खुशनुमा हमीं से हुई !

हम से पहले ज़मीन-ए-शहर-ए-वफ़ा,
ख़ाक थी, कमियां हमीं से हुई !

कौन उठता शब्-ए-फ़िराक के नाज़,
यह भला आशना हमीं से हुई !

बे-ग़रज़ कौन दिल गंवाता है,
तेरी कीमत अदा हमीं से हुई !

सितम-ए-नरवा तुझी से हुआ,
तेरे हक़ में दुआ हमीं से हुई !

साई-तजदीद-ए-दोस्ती "नसीर",
आज क्या, खता हमीं से हुई