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ज़िन्दगी से नहीं बेज़ार हैं हम / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी से नहीं बेज़ार हैं हम।
तेरी उल्फ़त के तलबगार हैं हम॥
जब हक़ीक़त से नज़र चार हुई
कह रहे लोग गुनहगार हैं हम॥
बेवफ़ा भूल गया हर वादा
अब रहे इसके ही हक़दार हैं हम॥
दर्द औरों का लगाया माथे
सच यही है बड़े दिलदार हैं हम॥
हैं बहुत सख़्त समय पड़ने पर
कोई समझे न कि लाचार हैं हम॥
दिल हमारा है इश्क़ का दरिया
दुश्मनों के लिये तलवार हैं हम॥
कब नदी वक्त की ठहरी है कहीं
बह रही है जो वही धार हैं हम॥