भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागो! ऐ मेरे नौजवान / हरीश प्रधान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुगबुगाहटें जौहर की, ज्वाला में होतीं
राजस्थानी रजपूत उट्ठो, केशरिया बाना पहिनो
मरूस्थल की भूमि मचल-मचल कर कहती है
दो आज बिदा, अपने वीरों को माँ बहिनों

राणा सांगा के घाव, आज फिर रिसते हैं
हल्दी घाटी के प्रण को, फिर दोहराना है
जो कदम कढ़ायें आज, देश की धरती पर
उसको हर दुस्साहस का, सबक सिखाना है

केशर, कस्तूरी, घोल, कसुम्‍बा मत छानो
राजस्थानी छाती में खुद, अंगारों की गर्माई है
जागो! ऐ मेरे नौजवान, रणभेरी की ध्वनि आई है



है आज परीक्षा, फिर दक्षिण के बांके वीर मराठों की
जिनकी तीखी तलवारों ने, दुश्मन का दमन कुचल डाला
जिनने दुश्मन की ताकत को, हर बार नाप कर मुट्ठी में
इतिहास मसि से नहीं, उफनते गर्म खून से लिख डाला

जिनके सीने में जोश भरी अकुलाहट है
जिनकी बाहों में उच्च पठारों का बल है
जिनके शस्त्रों में फौलादी टकराहट है
जो आज देश की आज़ादी का सम्‍बल है

कर लिया बहुत आराम, उट्ठो! चेतना भरो
लुटेरे गिद्धों ने फिर से ललचाई दृष्टि जमाई है
जागो! ऐ मेरे नौजवान, रणभेरी की ध्वनि आई है



क्‍या भूल गये पंजाब? देश का सिंह द्वार
गुरु गोविन्द, तेग, भगतसिंह की कुर्बानी को
दे रहा चुनौती, रावी का घहराता स्वर
पंजाब देश की, उठती नई जवानी को

भाषा, जाति, धर्म-भेद की, दीवारें मत खड़ी करो
जब भारत पर, संकट-का बादल छाया हो
हो सावधान! गृह कलह नहीं शोभा देता
जब शत्रु हमारी देहरी पर, चढ़ आया हो

बोलो फिर सत-सिरी अकाल, अभियान करो
गगन भेदी बन्दों ने, फिर अपनी हुँकार लगाई है
जागो! ऐ मेरे नौजवान, रणभेरी की ध्वनि आई है।



तय्यार रहे शक्ति सेना, ओ मेरे बंगाल देश
हर रजकण से, सुभाष का स्वर लहराता है
फिर शांतिनिकेतन, क्रांति निकेतन बन जाये
आह्वान देश की, दसों दिशा से आता है

सीधे से गर समझे न, अगर कोई हिंसक
जल थल नभ सेना, थोड़ा इनको सिखलाओ
तीसरा नयन अब महाकाल, तुम भी खोलो
सीमा से आगे बढऩे का, रंग दिखलाओ

जब पराकाष्ठा सहने की, हो जाय, उट्ठो
सभ्‍यता और संस्कृति पर, शामत आई है
जागो! ऐ मेरे नौजवान, रणभेरी की ध्वनि आई है।



ओ कवि, हाला प्‍याला के, गीत नहीं गाओ
स्वर बदल-बदल कर, कबिरा को मत दोहराओ
'मत गुनियाँ के यौवन' पर मन को मुग्ध करो
'लोरी' गाकर मत जाल, स्वप्‍न को फैलाओ

फिर उत्‍तर में, नगराज हिमालय बुला रहा
अरि की सेनाएँ, युद्धों को ललकार रही हैं
नापाक कतारें सीमाओं पर, पड़ी पड़ी
हिमगिरी की सांसे डसने को, फुफकार रही हैं

छोड़ो विहाग की ताने, दरबारी गाने
फिर युद्ध भैरवी गाने की, बारी आई है।
जागो! ऐ मेरे नौजवान रणभेरी की ध्वनि आई है।