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जागोॅ हे ग्रामदेव / भाग 1 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

छिटकै छै
दूर-दूर
कोशी के
लहरोॅ पर
काछोॅ-कछारोॅ पर
दूबोॅ पर
रेतोॅ पर
आरी पर
बारी पर
खेतोॅ पर
बेतोॅ पर
पत्ता पर
लत्ता पर
छपरी आ
छत्ता पर

लाल-लाल
नवयुवती
नयकी
बहुरिया के
ठोरोॅ रँ
एकदम्मे
होने ही
लाल किरिन
मुस्कै जों
नवयुवती
पान खाय
मुचुर-मुचुर
ठोरोॅ सें
जीभ-दाँत
लाल-लाल
मन भावै
राही-बटोही के
निष्ठुर-निर्मोही के

चहकै छै
फुदकै छै
ठारी पर
बारी पर
मैना-गोरैया
ठमकी जाय
टी वी टू
सुनथैं ही
सुनवैया।
किरने रं
लाल-लाल
केकरो तेॅ
पखना छै
केकरोॅ तेॅ
गल्ला में
सोने के
कंगना छै।

पाखी लेॅ
धरती-आकाश की छै
अंगना छै
जेना नहावै छै
कोशी के छारी पर
कोशी के पूत सिनी
गमछी लंगोट पिहनी
होनै केॅ
किरनोॅ के
कोशी में
डुबकी दै
झाड़ै छै
पखना केॅ
टखना केॅ
जगह-जगह
झुंडोॅ में
कै रँ के
पाखी सब
कोशी के
बालू पर।

रातो सें
कारोॅ जे
कजरोटी
आगिन पर
जरलोॅ रँ
ही रोटी
करिया रँ
मेघे सन
कौओ सब
गगलै छै
गाछी पर
छपरी पर
छत्तोॅ पर
मंदिर-मुंडेरोॅ पर
गोइठोॅ के
ढेरोॅ पर
लकड़ी पर
गैया के पुछड़ी पर
उछलै छै
काँव-काँव
ठाँव-ठाँव।

जगलोॅ छै
गामे नै
गैया बथानी भी
किरनोॅ के
छूथैं ही
लरुआ छलांग मारै
गैया पन्हावै
दादी केॅ
दादा केॅ
माय केॅ बुलावै
होन्हे रंभावै।

चललोॅ छै
हौले सें
भारकोॅ ठो
हवा सरस
सबकेॅ दै
दरस-परस
पत्ता के
आँखी केॅ
थपकी दै
खोलै छै
ठारी केॅ
झोलै छै
नींदोॅ सें
अभियो जे
मौलै छै।
गाछी के
बीचोॅ में
नुकलोॅ कोय पत्तो
आकि कोय लत्तो।

सिहरै छै
कोशी के
शांत जल
कल-कल-कल
खल-बल-खल
लहरोॅ पर लहर चलै
किरनोॅ के रंग घुलै।

अब तांय तेॅ
सब्भे कुछ
आँखोॅ सें
दूर रहै
रातोॅ के कोठरी में
डायन के पोटरी में
हवौ तलक
मौन रहै
पत्ता सें
पत्तौ तक
कुछ नै कहै।

सांसोॅ केॅ
चिड़ियां भी
बंद करी
धौनोॅ पर
चोंच धरी
मौन रहै
सब्भे रंग
लाल-हरा
नीला-सबूजा भी
मुँहोॅ पर
पट्टी केॅ
बाँधी केॅ
मौन रहेॅ।

अचके ही
सरंगोॅ के
पेंदी सें
मक्खन रं चिकनोॅ
सिनुरोॅ के
कीया रँ
राधा के
पीया रँ
उगलै सुरूज
धरती के
गल्ला में
गुदगुदी लगैनें
माथा पर
लाली के पर्वत उठैनें।

धरती के
कोख तलक
जग-मग-जग
जग-मग-जग
कल-कल जों
कोशी छै
चुर-चुर-चुर
बालै खग।

दूर कहीं
खेतोॅ पर
चरवाहा
गावै छै
प्राती-परभाती
हुलसै छै
रही रही
माँटी के छाती।

बकरी मेमावै छै
मेमनो ठो
संगे संग
पिछुवैलै आवै छै
गल्ला में
घुंघरू छै
गोड़ो में घुंघरू
आगू हँकावै छै
बड़कादा मैगरू।

पछियारी टोला में
पुरवारी टोला में
होने दखनाही में
आरो उतराही में
बच्चा के
शोर भेलै
जेन्है केॅ
भोर भेलै।

मधुमक्खी
छत्ता सें
उड़लै जों
मधुमक्खी
होनै केॅ
की गोइयाँ
आरो सब
की सक्खी
बीनै लेॅ
फूलोॅ केॅ
रौंदै छै
धूलोॅ केॅ।

पाँच हाथ
ऊपर तक
उठलोॅ छै
सुरज देव
जेना आकासोॅ के
माथा पर
बिन्दी छै
लाल-लाल।

चारो दिश
किरन-जाल
देहरी पर
ऐंगना में
चौकी पर
खटिया पर
बैठी केॅ
बुतरू सब
खोड़ा सिहारै छै
पटिया पर।

कुच्छू के
ध्यान अभी
टंगलोॅ छै
खेल्है पर
बच्चा के
मेल्है पर
ऊ तेॅ बस
बाबा के
डोॅर करी
बैठलोॅ छै
चुकू-मुकू
पोथी निहारै छै
हुन्नें ओसरन पर
दादा विचारै छै।