जागोॅ हे ग्रामदेव / भाग 2 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
”बीस बरस
आसै में
खपी गेलै
की भेलै
घुरियो केॅ
नै ऐलै
वंशीधर
चंदेशर
बिरजू सिंह
सरजुगवा
अरजुनमा
कोय्यो तेॅ
नै ऐलै
की भेलै।“
”हेने ही
भोर छेलै
पाखी के
शोर छेलै
गाँव भरी
लोगोॅ के
लै केॅ आशीष सब
गेलै तेॅ गेलै
की भेलै?“
”जत्तेॅ लोग
ओत्ते बात
दिन्हौ में
नाँचै रात
कोय बोलै
दिल्ली मंे
शोषण के
सिल्ली में
सब्भे पिसैलै
घुरी केॅ नै ऐलै।“
”कोय बोलै
कश्मीर में
लेलकै आतंकीं
या फेरू छै, बंधकी
नै जानौं
की भेलै
घुरी केॅ नै ऐलै।“
गेलै पंजाब
कि आसामे में
रही गेलै।“
”याद खाली
नामे ही
नै जानौं
दंगा में
आकि मजदूरी में
आकि मजबूरी में
दै देलकै
जान कहीं
प्राण कहीं।“
”हेने रँ
भोर छेलै
लोरोॅ सें
छल-छल रँ
सरंगो के
आँखी के
कोर छेलै
जखनी कि
मनसरिया
एतबरिया
सिरचनमा
लछमनमा
गाँवोॅ केॅ
छोड़ी केॅ
गेलै परदेश
तहिये सें नै ऐलै
केकरो सनेस।“
”आबै के
आबै छै
अभियो भी
होनै केॅ
पुरबोॅ में
लाल-लाल
रंथोॅ पर
लाल टेस भोर
ऐलता हिंगोर।“
”लेकिन नै
आवै छै
पहिले रं
गावै छै
कोसी-कछारी पर
बारी अटारी पर
खेतोॅ-खमारी पर
ऐंगन-दुआरी पर
गीत-नाद
होरी के
झुम्मर के
झुमटा के
चैता के
पुरवी के
कजरी के
नजरी के।“
की भेलै
गामोॅ के
सोना रँ
भोरोॅ केॅ
गारै छै
लोरोॅ केॅ
नै पावी
मंसूर केॅ
अफजल केॅ
शीतल केॅ।“
”आवै के
आवै छै
अभियो भी भोर
लेकिन बस
होने ही
जेना कि
आवै छै
गोरी कोय
पिन्ही केॅ
भांगलोॅ पटोर।“
”हेने की
शहरो में
गावै छै
प्राती केॅ
ढँूढ़ै छै
साथोॅ लेॅ
गोइयाँ केॅ
साथी केॅ।“
”सचमुच की
आपस में
मेल-जोल
रक्खै छै
हिरबा रँ
मिरवा रँ
गॉमोॅ के
जिरबा रँ
शहरोॅ के
रिश्ता सब
खाली देखशोभा
छी, छी, छी तौबा।“
”शहरे नी
लै लेलकै
धीया केॅ
पूता केॅ
गल्ला में
ढोवै छी
शहरोॅ के
जूता केॅ।“
”हेनो भी
दिन छैलै
जखनी सब
गामोॅ के
लोग सिनी
बैठै संग
तखनी सब
बात करै
सुक्खोॅ के
दुक्खोॅ के
होली के
गौना के
डोली के
रंगोॅ के
रागोॅ के
सब्भे के
भागोॅ के।“
”होरी-जोगीड़ा के
पानोॅ के बीड़ा के
छीटोॅ के
कोशी के
धारोॅ के
घाटोॅ के
घाटोॅ पर
महुआ घटवारिन के
व्याकुल वनजारिन के
बात चलै
दिन्हैं नै
रात चलै।“
”आबेॅ ई
बदला में
हाथ चलै
लात चलै
गाली संग
गोली भी
बारूद रँ
बोली भी
पिटपिटिया
भरनाठी
बाते में
लठ-लाठी।“
”जै ठां कि
गीत कभी
सामा-चकेवा के
भोग लागै मेवा के
वै ठां ही
बन्दूक छै
सब के दिल
फुक-फुक छै
बूढ़ोॅ के
बच्चौ के
नंगटा के
चोरोॅ के
कौआ के राजोॅ में
जान जाय मोरोॅ के।“
”गामोॅ में
लोग नै
नेता छै
कृष्ण बिना
त्रेता छै
कंश-वंश
काँव-काँव
सब्भे टा
खाँव-खाँव
गॉमोॅ के
राहत केॅ
निगली जाय
मिलतैं दाँव।“
”झाँपी केॅ
बैठलोॅ छै
साँप सिनी
सुरजोॅ केॅ
जैसें कि
करिया सन
लागै छै
सुरजो भी
धरती तेॅ
लागतै छै
करिया झमांट
नेता सब
लोगोॅ पर
गिरतें समाँट।“
”गामोॅ केॅ
सूर्य-गहन
लागलोॅ छै
आरो सब
नेता के
किस्मत-भाग
जागलोॅ छै।“
”शहरोॅ के
जहर-आग
लीलै छै
ग्राम-भाग
चामे रं
छीलै छै
कल तक जे
लीलाधर
स्नेहाघर
कुसमाकर
वीणाघर
कवि छेलै
की भेलै
सब्भे ठो
जाति में
बँटी-बँटी
आपने ठो
कोण्टा में
सटी-सटी
बाँचै छै
जाति के गीत
टूटी गेलै प्रीत।“