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जागो जगत्प्राण / रामगोपाल 'रुद्र'
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जागो जगत्प्राण!
सुधि के बरुण-बाण,
भूतल-अनलवान शीतल करो हे!
लाओ ललित हाव,
भव में भरो भाव,
कलिमल कुटिल चाव प्रांजल करो हे!
पाकर तुम्हें कूल,
कलियाँ बनें फूल,
हर फूल की धूल परिमल करो हे!