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जाग दीप मेरे / रामगोपाल 'रुद्र'
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जाग दीप मेरे!
तमसावृत व्यसोमवृत्त,
भयमय भू भोगचित्त;
दाहविकल सिन्धु सकल,
अनल-अनिल प्रेरे।
भव के विज्ञानचरण
न्योत रहे हिंस्रमरण,
कौन इस विनाशमुखी
हय का मुँह फेरे?
तेरा तपलीन ध्यान
लाए मंगल बिहान;
ज्ञान-भान का वितान
तम-तुहिन न घेरे।