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जानवरों का मेला / सभामोहन अवधिया 'स्वर्ण सहोदर'
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शोर मचा अलबेला है,
जानवरों का मेला है!
वन का बाघ दहाड़ता,
हाथी खड़ा चिंघाड़ता।
गधा जोर से रेंकता,
कूकूर ‘भों-भों’ भौंकता।
बड़े मजे की बेला है,
जानवरों का मेला है।
गैा बँधी रँभाती है,
बकरी तो मिमियाती है।
घोड़ा हिनहिनाए कैसा,
डोंय-डोंय डुंडके भैंसा।
बढ़िया रेलम-रेला है,
जानवरों का मेला है!