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जाने किसकी पाती लेकर / प्रभात पटेल पथिक
Kavita Kosh से
जाने किसकी पाती लेकर,
निकला नभ में श्वेताभ चाँद।
अति चारु लगे पश्चिमाकाश,
सिंदूरी रंग चटक मनहर।
खगकुल की मधुरिम कुल-कुल से,
व्याकुल-सा लगता हृदय-नगर।
जब-जब निहारता हूँ सन्ध्या-
चित्रित होती कंचनी-याद!
बेला-गौधूलि चरम पर आ
पहुची लेकर के सुधि अ-जान।
जो बिछड़ गया था कहीं-कभी,
अपने ही तन से अमर-प्राण।
मन हो अधीर करने लगता
प्रियतम से अपने स्व-सम्वाद!
एकाकी-सी सन्ध्या व भोर
एकल-सा जीवन रहा बीत
ये वर्तमान नीरस-निष्फल,
निश्छल कितना बीता अतीत।
ले गया छीन मुझसे कोई-
था, जीवन के सब मधुर स्वाद।
जाने किसकी पाती लेकर
निकला नभ में श्वेताभ चाँद।