भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाने वाले, हज़ार दरवाज़े / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
जाने वालो, हज़ार दरवाज़े
बाज़ हैं बे-शुमार दरवाज़े
शब ढले भी खुला हुआ क्यों है
किस का है इंतिज़ार दरवाज़े
वो अटीं ख़ून से हसीं गलियां
वो हुये संगसार दरवाज़े
कृष्ण` को ले के जब चले 'वसुदेव`
खुल गये ख़ुद हज़ार दरवाज़े
इक ज़माना था हम पे भी वा थे
शहरे-उल्फ़त के द्वार दरवाज़े
ज़िंदगी ने फ़रार जब चाहा
खुल गये सद-हज़ार दरवाज़े
हम: तन गोश खिड़कियां घर की
हम: तन इंतिज़ार दरवाज़े
सो गये अह्ले-शहर क्या दिन में
बँद हैं पुर-बहार दरवाज़े
आमद आमद है किस की ऐ रहबर
हो रहे हैं निसार दरवाज़े