भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जावेद उसमानी साहब के नाम / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
(जावेद उसमानी साहब के नाम)
सोचकर सर झुका दिया यारो।
हमने दुनिया को क्या दिया यारो॥
मैंने साक़ी से जाम माँगा था
उसने बादल झुका दिया यारो।
हमने रोकर उसे हँसाया था
उसने हँसकर रुला दिया यारो।
भूलने पर हुए जो आमादा
हमने क्या-क्या भुला दिया यारो।
वो हमारा सनम है सरबस है
ये भरम भी गँवा दिया यारो।
हाले-दिल बेपनाह मुबहम<ref>बेहद अस्पष्ट</ref> है
कैसे कह दें सुना दिया यारो।
सोज़ शिकवा भी कर नहीं सकता
फूल उसने चुभा दिया यारो॥
2002-2017
शब्दार्थ
<references/>