भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जितिया / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
जितिया पबनी कएले
केदरवा के ईआ
पिआस से बेआकुल होकऽ
कराहइअऽ जोर-जोर से
लेकिन न पिअइअऽ पानी
एको घूंट
जितिया पबनी हए
बेटा के अउरदा बढ़े ला
त केना ऊ
पी लेत एको घूंट पानी
इहे बेटा से त
हए ओकर दुनिया-संसार
एकरे से मिलत
ओकरा आग
एकरे से मिलत ओकरा मुक्ति
से ला
एतना कठ काट के
कएले हुए नबनी
लेकिन ओक्कर बेटी
चिथड़ा के भीजा-भीजा क
पोछइअऽ ओक्कर मुंह
आ सोचइअऽ-
काहेला भईया ला
माई भूखे-पिआसे
गट-गट सहइअऽ
आ हमरा ला
एक्को गो पबनी न करइअऽ?
ओक्कर सवाल
आई तक सवाल हए
तब!
जब इहो बन गेल हए-
एगो माई
आऊर सहइअऽ जितिया
अप्पन बेटा ला
त ओकरी बेटी के मन में
इहे सवाल घुमरइअऽ
बार-बार
हजार-बार।