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जिधर पहुँच जाती है तुम्हारी छाया / केदारनाथ अग्रवाल
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तुम नहीं छोड़ते भोग-संभोग
तुमसे बगावत करते हैं लोग
जिधर पहुँचती है तुम्हारी छाया
उधर फैल जाते हैं बुरे रोग
रचनाकाल: ०६-०३-१९६९