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जिनगी भरि हम कनैत रहलहुँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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जिनगी भरि हम कनैत रहलहुँ
जुल्म अहाँक सभ सहैत रहलहुँ

नारीक रूपमे जनम लेल तेँ
कठपुतरी बनि नचैत रहलँहु

देखि हमर हालतिकेँ अपने
खुलि-खुलि खूब हँसैत रहलहुँ

त्याग, दयाकेर मूर्ति बनल हम
मोमबत्ती सन जरैत रहलहुँ

तामस नहि भड़कय अपने केर
एहि डरसँ हम डरैत रहलहुँ

आश्वासनकेर बोल जहर सन
अहाँ कहैत हम सुनैत रहलहुँ

केहनो योग्य बनी तइयो हम
तिलक वेदी पर चढ़ैत रहलहुँ

ककरा लग दुःख प्रगट करू हम
तिल-तिल कऽ तेँ गलैत रहलहुँ

लऽ कोदारि अपनहि हाथेऽ हम
कब्र अपन कियै खुनैत रहलहुँ

भऽ निराश हम एहि जिनगीसँ
मौतक दिन नित गनैत रह लहुँ