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जिस पल से बरसात हुई है / गुलशन मधुर

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तब से मन भीगा-भीगा है, जिस पल से बरसात हुई है
बारिश में भीगे तन, तेरी मन से कुछ तो बात हुई है

जब से तन को बूंदों के छू जाने का अहसास हुआ है
मन का ठहरा-ठहरा मौसम सावन का वातास हुआ है
अभी तलक की गुमसुम चुप्पी ने अब अपनी ज़िद तोड़ी है
घिरा घिरा सावन का-सा नभ, धुला-धुला आकाश हुआ है
उमग रहे हैं फिर सुख के स्वर मायूसी की मात हुई है

धरती के सूखे आंगन को मेघों का दल सरस गया है
और यहाँ कुछ चुपके से इक बिसरे पल को परस गया है
जैसे पिघला हो कुछ मन में जाने कब का जमा हुआ सा
जैसे अंदर रुका हुआ कोई बादल-सा बरस गया है
चाहे पल भर को ही छंटा अंधेरा, उजली प्रात हुई है

अक्सर ऐसा ही होता है बूंदों की सरगम को सुन के
बारिश छेड़ दिया करती है तार किसी पहचानी धुन के
बूंदों की सरगम से मन में नए-पुराने गीत जगे हैं
लगता है मन आज रहेगा फिर से सुंदर सपने बुन के
रिमझिम की ऋतु नए सुरों की एक नई सौग़ात हुई है

तब से मन भीगा-भीगा है, जिस पल से बरसात हुई है
बारिश में भीगे तन, तेरी मन से कुछ तो बात हुई है