भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवण / दुष्यन्त जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुळक
कदी-कदी
दीखै थारै मुंडै

अर दरद
चिपाए राखौ
टैम-बेटैम

आओ
आपां जीवण नै समझां
अर
अेकदूजै सूं
करां प्रेम।