भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन-इतिहास / राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हृदय-देश के सुन्दर सूनेपन को आह मत लुटाओ।
अपनी वाणी का मृदु वैभव निठुर! यहाँ मत बिखराओ॥
नीरवता की गोदी मंे पीड़ाएँ सुख से सोती हैं।
बिखर गये नयनों की मंजूषा के सारे मोती हैं॥
सुखद शान्ति साधन यह मेरी मौन-समाधि न भंग करो।
ज्वाला ज्वलित न करो पुरानी सीपी में मुक्ता न भरो॥

आह! पढ़ो मत पढ़ न सकोगे यह विस्तृत सकरुण इतिहास।
लघु जीवन के ब्रण-वर्णन लूटे सुख का धुँधला आभास॥
कहीं न पृष्ठों के निनाद से सुप्त व्यथाएँ जग जायें।
सुभग-शान्ति-नन्दन कानन में आह न शोले बरसायें॥
कहीं न मुखरित आह हो उठे फिर वह नीरव हाहाकार।
तड़प न उठे भग्न उर फिर से विफल न होवे यह अभिसार॥

नहीं छलकता है मधु उससे नहिं मुसकानों का इतिहास।
नहीं हास्य-गाथा उसके सुनने का करो न विफल प्रयास॥
विस्मृति की मादक मदिरा पी मुझे मौन बस रहने दो।
जीवन-निर्झर को अनंत की ओर शीघ्र अब बहने दो॥
छोटे से जीवन की विस्तृत गाथा प्रकट न होने दो।
विस्मृति के घन अन्धकार में मूर्छित होकर सोने दो॥