जीवन / सुप्रिया सिंह 'वीणा'
ईश्वर के करुणा सें, मानव जीवन मिललै।
जीवन में मानव तोरोॅ, व्यवहार निराला छै।
आबेॅ सुनी लेॅ एक कथा, एक कंजूस सेठ सदा।
पैसा पर बैठलौ एक, कारोॅ नाकी नाग छेलै।
कालें केकरा छोड़ै छै, वें मुहोॅ केॅ खोलै छै।
आवी गेलै मौत घड़ी,जम रोॅ गेलै फाँस पड़ी।
मुहों सें नै बोल फूटै,आँखी संे खाली लोर छुटै।
बेचैनी सें व्याकुल वें बेटा के मूॅंह ताकै छै।
बेटा सोचै छै बाबू के, गड़लोॅ एक खजाना छै।
एक बार जौं ंबोल फूटै,तेॅ हमरा कुछ हाथ लगै।
गोदान करै लेॅ पंडित,खाड़ोॅ गैया रोॅ संग छै।
बेटा सब छोड़ी केॅ, वैदोॅ केॅ जाय केॅ लानलै छै।
वैदैं देखी केॅ झट सें, एक बात कही देलके।
बाबू एक्कै दाफी बस बोलथांे, फेरू प्राण न रहतौ।
बेटा पल में खुश होय गेलै,आबेॅ काम बनी गेलै।
बाबू आबेॅ खजाना के, आबेॅ नाम पता देतै।
मतुर जबेॅ बोली फुटलै, बेटा माथोॅ धुनी कानै।
बाबू बोललै कुलंगार, हमरोॅ सब संपत बेकार।
पुरे जिनगी हम्में संपते खाली जोगलै छीयै।
देखै नै छैं, तोरोॅ बछड़ा झाड़ू गेलै चिबाय।
तोरोॅ धियान कहाँ छौ आबेॅ झाड़ू टूटी गेलै।
हमरोॅ सब टा जोगलोॅ,सब बेरथ होय गेलै।
अतना कहतें बाबू के, साँस टूटी गेलै।
बेटा कानै, माथोॅ पीटै है की होय गेलै।