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जीवन आधार नहीं मिलता है / गोपालदास "नीरज"
Kavita Kosh से
मुझको जीवन आधार नहीं मिलता
आशाओं का संसार नहीं मिलता।
मधु से पीड़ित-मधुशाला से निर्वासित,
जग से, अपनों से निन्दित और उपेक्षित-
जीने के योग्य नहीं मेरा जीवन पर
मरने का भी अधिकार नहीं मिलता।
मुझको जीवन आधार नहीं मिलता..
भव-सागर में लहरों के आलोड़न से,
मैं टकराता फ़िरता तट के कण-२ से,
पर क्षण भर भी विश्राम मुझे दे दे जो
ऐसा भी तो मँझधार नहीं मिलता है।
मुझको जीवन आधार नहीं मिलता है..
अब पीने को खारी मदिरा पीता हूँ,
अन्तर में जल-२ कर ही तो जीता हूँ,
पर मुझे जला कर राख अरे जो कर दे
ऐसा भी तो अंगार नहीं मिलता है।
मुझको जीवन आधार नहीं मिलता है..