कोई रहमतों के भरोसे अपना मकां छोड़ के आया है
लगता है आज फिर एक मकां बनाने के लिए अपना जहाँ छोड़ के आया
यूं तो घर गुजर जाने का सबको नसीब नहीं होता
जिसको नहीं होता वही तो बंजारा बन जाता है
कोई रहमतों के भरोसे अपना मकां छोड़ के आया है
लगता है आज फिर एक मकां बनाने के लिए अपना जहाँ छोड़ के आया
यूं तो घर गुजर जाने का सबको नसीब नहीं होता
जिसको नहीं होता वही तो बंजारा बन जाता है