जीवन सारा देख लिया है / अभिषेक औदिच्य
जिन द्वन्दों में जीत सुनिश्चित उनमें हारा देख लिया है,
तब कहता हूँ मैंने अपना जीवन सारा देख लिया है।
अभी उम्र चौथाई बीती,
थोड़ी ही तरुणाई बीती।
अग्नि-परीक्षा वाली मुझपर,
एक-एक चौपाई बीती।
सब झूठे आरोप समय के,
मेरी चुप ने सत्य किये हैं।
अनय ओर से भरी सभा में पक्ष तुम्हारा देख लिया है।
मुखरित स्वर पर मुझे सदा ही,
बेमतलब को रोक दिखी है।
और कनपटी पर भी मुझको
बंदूकों की नोक दिखी है।
डरा-डरा कर कहा गया है,
जो वे बोलें मैं भी बोलूँ।
सच की जिह्वा पर मैंने जब इक अंगारा देख लिया है।
साधु भेष में ही संभव है,
जनक-दुलारी को हर पाना।
जो भीतर से ही सज्जन है,
उसने कपट नहीं पहचाना।
मन-लक्ष्मण की खींची रेखा,
उर-सीता से भंग हुई है।
लंकेशों का मैंने जब आवरण-उतारा देख लिया है।