जी हो पाँच बधावा म्हारा यहाँ आविया / निमाड़ी
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
जी हो पाँच बधावा म्हारा यहाँ आविया,
पाँचई की नवी नवी रीत।
जी हो, नरवरगढ़ को ऊदो चूड़ो नऽ पोचयो सांवळो।
चूड़ीला पर उग्यों सूर्या भान महाराज।
जी हो, पहिलो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा ससुराजी द्वार,
जी हो, ससुराजी रंग सु बधाविया,
सासु नारेळ भरया थाळ महाराज,
जी हो दूसरो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा पिताजी द्वार,
जी हो पिताजी रंग सु बधाविया,
माया मोतियन भरया थाळ महाराज,
जी हो तीसरो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो ते जेठजी द्वार,
जी हो, जेठजी रंग सु बधाविया,
जेठाणी न लियो पगरण सार महाराज,
जी हो, चौथो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा बीराजी द्वार,
जी हो, बीराजी रंग सु बधाविया,
भावज न लियो घूँघट सार,
जी हो, पांचवों बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारी धनकेरी कूख,
जी हो इनी कूख हीरा रत्न नीबज्या,
जे को ते पगरण आरंभियो।