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जुस्तजू में तिरी जो गए / रविंदर कुमार सोनी

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जुस्तजू में तिरी जो गए
कौन जाने कहाँ खो गए

सुन रहे थे कहानी तिरी
जागते जागते सो गए

कल समझता था अपना जिन्हें
आज बेगाने वो हो गए

दिल में अरमान पाले मगर
ऐसे बिखरे हवा हो गए

देर आने में हम से हुई
वो गए अब तो यारो गए

दूर होती रहीं मंजिलें
ऐ रवि रास्ते खो गए