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जेठ / समृद्धि मनचन्दा
Kavita Kosh से
क्या पता ? शायद जेठ की
इस मन्थर दुपहर में
तुम किसी रूईदार ख़्वाब में
देख रही हो मुझे
जब मैं
ठोस पसीने में
दबा जा रहा हूँ
तुम्हारा ख़्वाब
मेरे होने की सबसे महफ़ूज़ जगह है
वहाँ फूल लगते हैं मुझ पर
ज़ंग नहीं लगता, जान !