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जेठ के दुपहरिया / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
मऊसम के बदल गेलय रूप।
फैलल बड़ी चिलचिलाल धूप।
मचा रहल पछिया कुहराम।।
अकुलाहट भरल-भरल दिन।
दाह-धाह बाँटय पल छिन।
कहाँ कहाँइ छाँह सजल-धाम।।
ठौर-ठौर बिछल हियाँ आग।
झुलस रहल बगिया के भाग।
अन्हड़ के कहर ठामे- थाम।।
मिरिगतिरिसना के रे फैलाव।
दरिया-कूँइयाँ सभे बेआव।
तड़प रहल अदमियन तमाम।।
अजब होलय धरती के हाल।
सूख रहल जिनगी के ताल।
जीनइ त• हो गेलय हराम।।