भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जे थारै ई है हाथ / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हैं सुणी है
थूं ई चूंच दी है
चुग्गो ई थूं देसी
पण बगत माथै
बगत पण बो
आसी कद
ओ तो बता परमेसर!

आ भी सुणीं है
थूं जद देवै
छप्पर फाड़र देवै
थूं परमेसर है
छप्पर बांध
फोड़ै क्यूं परमेसर?

देवणों
जे थारै ई है हाथ
तो दाता
बगत टाळ'र
अनै छप्पर फाड़र
मत ना दीजे
भोत दोरा बंधै
म्हारै झूंपड़ा!